नारी विमर्श >> हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएँ हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएँगरिमा श्रीवास्तव
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"स्त्री स्वर का उदय—जब कविता बनी प्रतिरोध"
नवजागरण के दौर की जिन रचनाकारों ने काव्य रचनाएँ कीं, उनके योगदान को आलोचकों द्वारा कभी खुले मन से स्वीकारा भी नहीं गया। रामाशंकर शुक्ल रसाल जिन्होंने कवयित्रियों के संग्रह की भूमिका लिखी, वे साहित्येतिहास में स्त्री रचनात्मकता की अवहेलना की बात स्वीकार करते हुए भी, उन्हें दोयम दर्जे की रचनाकार मानते हुए लिखते हैं – ‘‘बोध–वृत्ति साधारणतया स्त्रियों में उतने अच्छे रूप में नहीं मिलती जितनी वह पुरुषों में मिलती है… इसलिए स्त्रियाँ भक्ति रचनाओं में ज्यादा रमती हैं अन्य विषयों की तरफ उतना आकर्षित नहीं होतीं’’ …गार्हस्थ्य सम्बन्धी विषयों में दक्षता प्राप्त करना स्त्रियों का एक परमोच्च कर्तव्य है।’’ स्त्रियों को मर्यादा सम्बन्धी दिशा–निर्देश देने से आलोचक नहीं चूके, आज भी नहीं चूकते ऐसे में स्त्रियों की बोध–वृत्ति सीमित नहीं होगी तो क्या होगा ? सहज–स्वाभाविक मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति की छूट उन्हें थी नहीं, शिक्षा और बाहरी समाज से संपर्क के अवसर या तो रुद्ध थे या थे तो बहुत कम। सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक और निजी, ये चार तरह की सेंसरशिप उनपर हावी थी। ऐसे में वे या तो पुरुषों के पैटर्न पर समस्या–पूर्ति कर रही थीं, जिनमें बूंदी की चंद्रकला बाई, तोरन देवी सुकुल, रमा देवी, बुंदेला बाला की रचनाओं को देखा जा सकता है या श्रृंगार और नीतिपरक कविताओं की तर्ज पर लिखने वाली साईं , छत्रकुंवरी बाई जो कृष्णप्रेम की अभिव्यक्ति कर रही थीं। लेकिन ये किसी भी विषय पर लिखें, उनका लिखना अपने आप में ही, चली आ रही सामाजिक व्यवस्था में एक प्रकार का हस्तक्षेप है।
स्त्रियाँ किस तरह चुपचाप तत्कालीन राजनीतिक परिवर्तनों को सुन–गुन रही थीं, इसके प्रमाण स्वरुप रानी गुणवती को देखा जा सकता है। ये वही रानी गुणवती थीं, जिनकी लिखी तीन पुस्तकों की चर्चा श्री रामनरेश त्रिपाठी ने ‘राजमाता दियरा जीवन चरित्र’ में की थी। सूपशास्त्र, वनिता बुद्धि विलास और भगिनी मिलन की रचना करने वाली गुणवती ने 11 जून 1922 को कस्तूरबा गाँधी को लिखे एक पत्र में यह छंद लिखा : सिन्धु तीर एक टिटहरी, तेहिको पहुंची पीर सो प्रन ठानी अगम अति, विचलत न मन धीर, तेहि प्रन राखन के लिए अड़ गए मुनि बीर, परम पिता को सुमिरि कै सोखेऊ जलधि गंभीर। इस छंद से रानीगुणवती के काव्य कौशल के साथ–साथ उनकी राजनैतिक सोच और पकड़ परिलक्षित होती है।
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